
कटनी : मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के उद्देश्य से वर्षों पहले बनाई गई दो-बच्चों की नीति आज खुद सरकारी व्यवस्था की कमजोरी और उदासीनता की शिकार बनती जा रही है। कागजों में यह नीति सख्त दिखती है यदि किसी सरकारी कर्मचारी के दो से अधिक संतानें होती हैं तो वह नियुक्ति, पदोन्नति और चुनाव जैसी तमाम सरकारी सुविधाओं से वंचित किया जाना चाहिए। लेकिन ज़मीनी सच्चाई इससे बिल्कुल उलट है। प्रदेश में दो से ज्यादा बच्चे होने के बावजूद न केवल हजारों लोग सरकारी नौकरी में बने हुए हैं, बल्कि कुछ मामलों में पदोन्नति और अन्य लाभ भी पा रहे हैं। यह न केवल सरकारी नियमों की अवहेलना है,
जनसंख्या नियंत्रण नीति की पृष्ठभूमि
मध्य प्रदेश सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में 2001 में यह नीति लागू की थी कि अगर किसी व्यक्ति की तीसरी संतान का जन्म 26 जनवरी 2001 के बाद होता है, तो वह व्यक्ति न तो शासकीय सेवा में नियुक्त किया जाएगा और न ही पंचायत/नगरीय निकाय चुनाव लड़ सकेगा। इस कानून का उद्देश्य राज्य में जनसंख्या की वृद्धि को नियंत्रित करना और संसाधनों का बेहतर वितरण करना था। परंतु यह कानून आज खुद सरकारी तंत्र के हाथों खोखला होता नजर आ रहा है। कई विभागों में दो से अधिक संतान वाले कर्मचारी न सिर्फ कार्यरत हैं, बल्कि उन्हें नौकरी से हटाने की दिशा में कोई गंभीर प्रयास तक नहीं किए गए हैं। शिक्षा, पंचायत, स्वास्थ्य, नगरीय प्रशासन और पुलिस विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभागों में हजारों कर्मचारी दो से अधिक संतान रखते हैं। लेकिन इसके बावजूद इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। कई कर्मचारियों ने नौकरी के समय झूठे घोषणा-पत्र दिए या बाद में बच्चों के जन्म की जानकारी विभाग से छिपा ली।
जमीनी मामलाः कटनी जिले की तहसील स्लीमनाबाद के ग्राम छपरा निवासी तहसील ढीमरखेड़ा में पटवारी पद पर पदस्थ शैलेन्द्र झारिया एवं उनकी पत्नी स्लीमनाबाद तहसील में शिक्षक के रूप में शासकीय प्राथमिक शाला देवरी छपरा मे शिक्षक, है । आज के दौर में लड़का ,लड़की बराबर है मगर यहाँ कुछ और ही है पुत्र की चाह में चार संतान हो गई इन दोनों शासकीय कर्मचारियों के तीन लड़की और एक लड़का है । लड़का सबसे छोटा है इससे साफ स्पष्ट होता है की पुत्र की चाह के चलते चार संतान हुई है।जानकारी के मुताबिक नियुक्ति होने के बाद तीन संतानों का जन्म हुआ है। इन शासकीय कर्मचारियों की संतान का जन्म 2001 के बाद का है, जो नीति के साफ उल्लंघन में आता है।
राजनीतिक चुप्पी और प्रशासनिक ढिलाई
इस पूरे मामले में सबसे गंभीर बात है की सरकार और प्रशासन की चुप्पी। सरकार लगातार मंचों से जनसंख्या नियंत्रण पर सख्त कानून बनाने की बात करती है, लेकिन अपने ही कर्मचारियों पर कोई सख्ती नहीं दिखा पा रही।